Wednesday, 26 June 2013

अंडे का सच :



http://www.youtube.com/watch?v=261Z8kDhZd4



आजकल मुझे यह देख कर अत्यंत खेद और आश्चर्य होता है की अंडा शाकाहार का पर्याय बन चुका है ,ब्राह्मणों से लेकर जैनियों तक सभी ने खुल्लमखुल्ला अंडा खाना शुरू कर दिया है ...खैर मै ज्यादा भूमिका और प्रकथन में न जाता हुआ सीधे तथ्य पर आ रहा हूँ
मादा स्तनपाईयों (बन्दर बिल्ली गाय मनुष्य) में एक निश्चित समय के बाद अंडोत्सर्जन एक चक्र के रूप में होता है उदारहरणतः मनुष्यों में यह महीने में एक बार,.. चार दिन तक होता है जिसे माहवारी या मासिक धर्म कहते है ..उन दिनों में स्त्रियों को पूजा पाठ चूल्हा रसोईघर आदि से दूर रखा जाता है ..यहाँ तक की स्नान से पहले किसी को छूना भी वर्जित है कई परिवारों में ...शास्त्रों में भी इन नियमों का वर्णन है
इसका वैज्ञानिक विश्लेषण करना चाहूँगा ..मासिक स्राव के दौरान स्त्रियों में मादा हार्मोन (estrogen) की अत्यधिक मात्रा उत्सर्जित होती है और सारे शारीर से यह निकलता रहता है ..
इसकी पुष्टि के लिए एक छोटा सा प्रयोग करिये ..एक गमले में फूल या कोई भी पौधा है तो उस पर रजस्वला स्त्री से दो चार दिन तक पानी से सिंचाई कराइये ..वह पौधा सूख जाएगा ,
अब आते है मुर्गी के अण्डे की ओर
१) पक्षियों (मुर्गियों) में भी अंडोत्सर्जन एक चक्र के रूप में होता है अंतर केवल इतना है की वह तरल रूप में ना हो कर ठोस (अण्डे) के रूप में बाहर आता है ,
२) सीधे तौर पर कहा जाए तो अंडा मुर्गी की माहवारी या मासिक धर्म है और मादा हार्मोन (estrogen) से भरपूर है और बहुत ही हानिकारक है
३) ज्यादा पैसे कमाने के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर आजकल मुर्गियों को भारत में निषेधित ड्रग ओक्सिटोसिन(oxytocin) का इंजेक्शन लगाया जाता है जिससे के मुर्गियाँ लगातार अनिषेचित (unfertilized)  अण्डे देती है
४) इन भ्रूणों (अन्डो) को खाने से पुरुषों में (estrogen) हार्मोन के बढ़ने के कारण कई रोग उत्पन्न हो रहे है जैसे के वीर्य में शुक्राणुओ की कमी (oligozoospermia, azoospermia) , नपुंसकता और स्तनों का उगना (gynacomastia), हार्मोन असंतुलन के कारण डिप्रेशन आदि ...
वहीँ स्त्रियों में अनियमित मासिक, बन्ध्यत्व , (PCO poly cystic oveary) गर्भाशय कैंसर आदि रोग हो रहे है
५) अन्डो में पोषक पदार्थो के लाभ से ज्यादा इन रोगों से हांनी का पलड़ा ही भारी है .
६) अन्डो के अंदर का पीला भाग लगभग ७० % कोलेस्ट्रोल है जो की ह्रदय रोग (heart attack) का मुख्य कारण है
7) पक्षियों की माहवारी (अन्डो) को खाना धर्म और शास्त्रों के विरुद्ध , अप्राकृतिक , और अपवित्र और चंडाल कर्म है

इसकी जगह पर आप दूध पीजिए जो के पोषक , पवित्र और शास्त्र सम्मत भी है

Monday, 17 June 2013

WTO: देश को लूटने का षड़यंत्र...



ये है कहानी भारत को कैसे गुलाम बनाया जा रहा है ..... इससे निकलना ही एक मात्र रास्ता है बचने का ....

जरूर देखें और फेलायें : 

http://www.youtube.com/watch?v=94uhgFs5cOc



1 Jan 2005 से WTO  देश में लागू  हुआ
15 Dec. 1994 में हस्ताक्षर किये.... इस बीच सब पार्टियों ने शाशन किया... वे भी जिन्होंने आन्दोलन किया इसके खिलाफ.......

यह ऐसा समझोता जिसमे देश के कृषि, उद्योग, व्यापार, शिक्षा, बैंकिंग, बौधिक सम्पदा, बीमा और  चिकित्सा जैसे सवेदनशील शेत्रो पर असर परेगा और पर  रहा हे.. बल्कि  देश की संप्रुभता ही WTO की गिरवी हो रही है,, चर्च की ही नहीं.....


इसे या तो पूरी तरह से स्वीकार या फिर छोर सकते हे...... (ऐसा नहीं की कुछ बिंदु हम मान ले और कुछ नहीं...)


1 और 2 baar discussion सदस्य देशो के बीच मीटिंग हर साल, 126 से ज्यादा सदस्य...

 28 subujects है, जो अपने आप में अग्रीमेंट हे..

इतिहास:


1930 -- में मंदी आई... उसे दूर करने के लिए World War II (1939-1945) हुआ,  West countries की मान्यता हे की ज्यादा मंदी हुयी तो युद्ध करो... हथियार बढ़ेंगे... पैसा आएगा... क्यों? क्योकि उनका (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, गेरमन्य) मुख्य business हथियार बनाना है और इससे 10 तरह के और उद्योग जुड़े हे...         


1945 UNO बना की अब युद्ध न हो.. लेकिन 325 युद्ध हुए.....

अर्थव्यस्था सुधारने के लिए World बैंक, IMF बने.... पर असल में यह सब दुसरे देशो को गुलाम बनाने के ही नए हथियार थे...

दुसरे विश्व युद्ध में यूरोपीय देश की तबाही ज्यादा हुई, इसलिए वर्ल्ड बैंक ने कम इंटेरेस्ट पे इनको लोन दिया.... अमेरिका को कम नुक्सान हुआ और उसने ब्रिटेन के उपनिवेशवाद को  ख़तम करके... अपने नए तरह के नए तरीके ढूदे ..... जैसे कानून से, कंपनियों को बढ़ावा दे के.. वर्ल्ड बैंक, और इम्फ बना के.... WTO, ETC.

1948 -- विश्व के व्यपार को व्यस्थित और सरल बनाने के उद्देस्य से General Agreement on Trade & Tariff (GATT)(तटकर एव व्यापर पर सामान्य समझोता) बनाया. 30 Oct. 1947 में हस्ताक्षर  किये... Jan. 1948 में लागू ..                  मुख्य  उदेसय:    टैक्स, कस्टम, आयात करो को सुलझाना..          

  
1948-1986 तक व्यापार अच्छा चला...
चीन ने इसे 53 सालो तक इससे स्वीकार नहीं किया...
 
1980 के आस-पास फिर मंदी हुयी यूरोपे और अमेरिका में.. कई कोम्पनीया  बंद हो गयी........ बेरोज़गारी बढ़ गयी.......

फिर युद्ध हुआ:  इरान-इराक  जो की 8 साल तक चला...

फिर खाड़ी युद्ध हुआ:  अफगानिस्तान ...    तो यूरोपे में हर 30-40 साल में मंदी आती हे.. अब उनको स्थायी इलाज़ चाहिए.....
इसलिए उन्होंने इसका आधार बनाया GATT को....
  
IInd Phase:


1986 उरुग्वे की मीटिंग में GATT के शेत्र को बाधा दिया गया... इसमें 28 विषय और जोड़ दिए गए.....
Till 1986  तक किसी भी देश के आंतरिक सम्प्रोभाता से जुड़े मामले GATT में नहीं थे....   लेकिन 1986 में ये दाल दिए गए... जो की किसी भी देश के लिए खतरनाक हे..

Team Head:  Arthor Dunkel (अमेरिका का था)

1986-1991 -- अमेरिका और यूरोपे के सदस्यों ने यह बिल ड्राफ्ट किया.... और 1991 में विचार के लिए टेबल में रख दिया...    

अफ्रीका, एशियन, लातिन अमेरिकेन -- भारत, ब्राज़ील, मिश्रा, Nigeria, ने इसका खुल के विरोध किया...  क्योकि इसमें ज्यादातर शर्ते अमेरिका और यूरोपे के फायदे के लिए ही थी ...


भारत ने कुछ शर्ते जो गरीब देशो के हित में थी उनको रखने की कोशिश करी पर नाकाम रहे.... इसलिए भारत ने कहा की यह भारतीय हितो में नहीं हे... और इसमें हस्ताक्षर करने से मन कर दिया.....उस समय पुरे देश में इसका विरोश हो रहा था....


परन्तु.......     15 Dec. 1994  को भारत की सरकार ने देश के साथ दोखा करके.. व् देश को अँधेरे में रख के इसमें हस्ताक्षर कर दिए.....   


1991-1994 --- चर्चा के समय वर्ष मतलब 4 साल में संसद में सिर्फ 11 घंटे चर्चा हुयी.....  मतलब इतने बड़े, इतने महतवपूर्ण विषय पे जिसमे की देश की संप्रुभता का सवाल था... जिसमे हमारे किसानो का रोज़ी-रोटी, व्यापारिया का जीवन... सब कुछ.. दाव पे लगा था... उसमे सिर्फ इतने घंटे ही बहस....

थोरा सा बहस बंगाल और पूजब में हुयी.... और थोरा सा अखबारों के माध्यम  से.....

इसके मुख्या तीन शेत्र हे....


I. कृषि:

हर देश अपने-अपने किसानो को और कृषि उत्पादन में तरह-तरह से मदद करती हे.... जैसे:
 न्यूनतम समर्थन मूल्य देना..
रासायनिक खाद/कित्नाशाको को सस्ते दरो पर देना..
कम ब्याज पर लोन देना..
किसी मुसीबत के समय लोन माफ़ करना ..या ब्याज का माफ़ करना...
कम कीमत पे बिजली देना....
विदेशो से उत्पादों पे मात्रात्मक प्रतिबन्ध लगाना ताकि हमारे गृह उद्योग, कृषि को नुक्सान न हो.....

WTO में कृषि में मुख्या रूप से 3 शेत्र हे: 

1. Subsidy                                    2. Market Access             
3. उत्पादों को विदेशो में निर्यात की सहयता (विदेशी सामानों को हमारे यहाँ लाने में sahayata)

According Article 3 : ==>  Domestic Support (घरेलु सहायता) i.e.. Subsidy को लगातार कम करना होगा....

        और हमारी सर्कार ने हस्ताकाक्षर करने से लागो करने तक (1994-2005) 24% सुब्सिद्य कम कर दी थी...    और आने वाले प्रत्येक वर्ष में यह कटोती होते-होते 5% तक रह जायेगी.....
         ==> मतलब भारत की सरकार सिर्फ 5% से ज्यादा subsidy नहीं दे सकती ....  यह अलग-अलग या कुल भी हो सकती हे...

Subsidy:      Direct       Indirect         

   
Direct:  किसान कृषि उत्पादों को बाज़ार में बेचता हे... सर्कार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाता हे... भारत में यह अंतर-रास्ट्रीय   बाज़ार के खुले मूल्य से अक्सर अधिक होता हे.....
उदहारण:       2005 में कपास का मूल्य         1500 - 1700 rs. per quintal   ---   अंतर-रास्ट्रीय बाज़ार में... (विदेश में..)   
                                                            2000 - 2500 rs. per quintal   ---   रास्ट्रीय बाज़ार में.. (हमारे देश में...)    

तो direct subsidy का मतलब अंतर-रास्ट्रीय   खुले बाज़ार से अधिक मूल्य पर किसानो की फसल खरीदना हे....


Indirect Subsidy:


1.   Urea, DAP, Phosphate किसानो को कम मूल्य पर मिलता हे....  
उदहारण:           100 kg. cost ==>  980 rs.    
                        किसान को कीमत   560 rs.          इसलिए   indirect subsidy  हुयी....   =    420 rs.

2.  कम कीमत पर बीजली, पानी देना.....   

उदहारण:   औधोगिक बीजली  का रेट:   5-6 rs. प्रति यूनिट  हे....      पर किसानो को दी जाती हे...     2-3 rs प्रति यूनिट......

Market Access:
Article 4
भारत  के   बाजारों   को  खोलना  होगा  विदेशी   उत्पादों  के  लिए …   कोई  प्रतिबन्ध  नहीं ….
अभी  मात्रात्मक  प्रतिबन्ध और  आयात  कर  लगाये  जाते  है  ताकि  हमारा बाज़ार  विदेशी  सामानों  से  पट  न  जाए ….
Article 5.4 
ज्यादा  आयात  कर  नहीं  लगा  सकते ……. WTO लागो  होने  तक  (1994-2005)   आयात  कर  में  35% से  70% तक  कमी  कर  दी  थे … सरकार  ने …..   तो  यह  सरकार  तो   हमारे  लिए  काम  ही  नहीं  कर  रही …
Article 7 & 9:
कृषि  उत्पादों  पर  निर्यात  सुब्सिद्य  में  कटोती  व्  अन्य  व्यपार  विरोधी  subsidy में  भी  कटोती  करनी  होगी …
इससे  हमारा  निर्यात  कम  होगा … हमारे  सामान  कम  बिकेंगे … व्  मेहेंगे   बिकेंगे …. जबकि  विदेशी  सामान  सस्ते  मिलेंगे …. तो  हमारे  गृह  व्यापारियों , गृह  उद्योगों  को   मारने  का  षड़यंत्र  हे  ये  WTO….

चाय , कोफ्फी , कपास , सब्जिया , फल , चावल , गेहू , घी , मेवा ,  आद्दी  आदि  में  व्यापार  घटा  ज्यादा  होगा …   उसको  पूरा  करने  के  लिए  हमारा  देश  और  अधिक  क़र्ज़  लेगा … ज्यादा  टैक्स  जनता  पर  लगाये  जायेंगे ….  जिससे  महंगाई  और  अधिक  बढ़ेगी ….  पैसे  के  कीमत  और  अधिक  गिरेगी ….

निर्यात  फिर  घटेगा … फिर  हम  क़र्ज़  लेंगे …फिर कोम्पनीया बुलाई जायेंगी... उनको खुली छुट मिलेगी... तो  इस  चक्र  में  हम  फसते  गए … गोल -गोल  घूमते  गए ….


II. बौधिक सम्पति अधिकार  समझोता : TRIPS (Trade Related Intellectual Property Rights)


पहले सिर्फ प्रक्रिया पर ही अधिकार लिया जाता था......

और अब WTO के हिसाब से प्रक्रिया और उत्पाद दोनों के लिए PATENT लेना होगा....

अभी तक कृषि और खाद सुरक्षा, जरूरी दवाओ में Patent नहीं दिया जाता था..... पर अब देना होगा....


पटेंट लेने वाली कंपनी ही उन बीजों का उत्पादन, वितरण कर सकता हे....


1970 के हमारे पुराने पटेंट कानून को बदला गया सिर्फ WTO के हिसाब से....

यह पटेंट 20 साल के लिए दिए जायेंगे.... कंपनी मनमाने ढंग से बाज़ार पे अतिक्रमण करेगी... और फिर थोरा सा फ़ॉर्मूला बदल के फिर अगले 20 सालो का पटेंट ले लेगी....

भारत में   32 crore acre   में खेती की जाती हे....    22 क्रोर टन अनाज का उत्पादन होता हे.... हजारो लाखो टन बीज की जरूरत होती हे..... तो अगर किसी कंपनी ने किसी ख़ास बीज का पटेंट करा लिया तो दूसरी कोई कंपनी उसे बना नहीं सकती बेच नहीं सकती... किसान उसे बना नहीं सकते.... उन्हें सिर्फ उसी कंपनी से ही खरीदना होगा....


हमारे यहाँ गाय का दूध, जमीन ही सम्पति हे....    जानकारी, ज्ञान को दो या दो से अधिक लोग उपयोग कर सकते हे...... हमारे यहाँ बोला जाता हे... की ज्ञान बाटने से ही बढ़ता हे.....ज्ञान को लोगो के साथ नहीं जोड़ा गया.....  कभी लाभ के लिए नहीं माना गया....  पर इन विदेशियों ने इसपर भी अधिकार ज़माना शुरू कर दिया.... हमारे नीम, हल्दी चन्दन और कई चीजों का पटेंट कर लिया हे....



III.   सेवा शेत्र:  


बैंक, बीमा, परिवहन, दूरसंचार, मीडिया,  ADD,  स्वस्थ्य, शिक्षा.....इसमें शामिल किया गया.....
Article 2 :  सरकारी और सैनिक को छोर के सभी शेत्रो को विदेशो के लिए खोलना होगा.....
Switzerland का 90%   income इसी शेत्र से आता हे.....
  जेर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, america  का  2/3 से ज्यादा रोजगार इसी शेत्र में हे....

कृषि, उद्योग और सेवा शेत्र       अगर इन तीनो पे कब्ज़ा कर लिया तो किसी भी देश का कोई भी दूसरा शेत्र आसानी से नियन्त्र में आ जायेंगे........


WTO  के समझोते के रास्ट्रीय अर्थव्यस्थाओ और प्रथिक्मिताओ का कोई महत्व नही रह जाता...

क्योकि Article 16 para 4:  सदस्य देशो को समझोते के अनुरूप अपने नियम कानून बदलने होंगे...
हमारी संप्रभु संसद की क्या हैसियत रहेगी... सिर्फ  clerk की ही रहेगी....

राज्यों के शेत्र:  :::==>         कृषि,    कृषि    पर subsidy ,      गरीबो को सस्ता अनाज,  सेवा शेत्र,    शिक्षा,  सफाई   और  उद्योग.

सविंधान का मूल सिधांत  हे.....:   बिना राज्यों की सहमति  के उनके  अधिकारों में कोई कटोती नहीं की जा सकती.... इसके लिए सविंधान में राज्य सूचि दे राखी हे..
सविंधान के  Article 249 :   राज्यों से 2/3 बहुमत से पास करा के ही कोई केंद्र राज्यों के लिए कानून बना सकता हे....
Article 252   :
राज्यों की permission ले  के ही उनके लिए कानून बना सकते हे.... 

पर केंद्र ने बिना पूछे इसमें हस्ताक्षर किये.......   आखिर यह किसके कहने पे किया.... किसके लिए किया.... इसके फेलाने की बहुत जरूरत हे......



विकसित देशो के 10 बांको के पास दुनिया की  2/3  पूजी हे.....

जापान के 3 बेंको के पास भारत के GDP से 3 गुना ज्यादा पूजी हे....

 
 1980 में अमेरिका pressure फॉर Liberalisation शुरू हुआ.... अफ्रीकी देशो में विदेशी सामान भर गए,,  निगेरिया, सोमालिया, इथोपिया....आदि देशो में उनका सामान बिकना बंद हो गया.... उसके बाद बहार का सामान महंगा हो गया... फिर वह भुकमरी की समस्या विकराल रूप में पैदा हुई...
 बीच में  1983 में Nigeria ने अमेरिका गेहू पर प्रतिबन्ध लगा दिया... Nigeria के किसानो के कसाबा, ज्वर, बाजरा का उत्पादन बढाया.... तो अमेरिकी कंपनी Kargil ने Nigeria govt. पे pressure बढाया.....nigeria  का कपड़ा अमेरिका में बंद करके.....  तो उसके बाद Nigeria ने फिर अपने बाज़ार अमेरिकी कोम्पनीयू के लिए खोल दिए....   

1950 में Liberalisation शुरू हुआ अमेरिका में.....

1950-1960 तक अमेरिका में   30% तक छोटे छोटे किसान समाप्त हो गए...
1960-1970   तक 26% और कम हुए....
1970-1995   तक 10% हे रह गए...
2005   me     3%-4%   ही रह गए...      
बड़ी बड़ी जजीने किसी एक बड़े आदमी या फिर कम्पनीयों के पास चली गयी....

मतलब   50 - 55  सालो   में   96%  किसान   समाप्त   हो   गए.....
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GATT से पहले भारत में बीजों का उत्पादन पब्लिक सेक्टर की कम्पनीय हे करती थी..  या फिर छोटे छोटे हिस्सों में कुछ कम्पनीय बनती थी... और यह दूसरी कम्पनीय द्वारा बनाई हुई बीजों का उत्पादन करने के लिए भी आज़ाद थी.... किसान भी खुद बना सकते थे... और बेच सकते थे..... परुन्तु....GATT से यह सब बंद हो गया.....

उदहारण:   चावल के फसल में  अगर  'blast '  नामक रोग हो गया... और किसी कंपनी ने ऐसा बीज बनाया जो 'ब्लास्ट'   रोग से free हो तो कोई दूसरी कोम्पन्यी या संगठन यह बीज नहीं बना सकती या बेच सकती...... इस प्रकार यह उस कंपनी की एकाधिकार हो गया....

तो यह समझोता पूर्ण रूप से देश को गुलाम बनाने.. व् विदेशी कोम्पनीएयो के हाथो में बेचने... व् हमारे गृह उद्योगों को ख़तम करने के लिए ही हे..... चाहे कोई भी सरकार आये... इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. ..हम युही धीरे धीरे गुलामी की और ही बढ़ रहे हे......   यह सिलसिला तब जारी रहेगा जब तक हम इस WTO से बहार नहीं आएगा....  












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Tuesday, 11 June 2013

देविंदर शर्मा : ग्रामीण भारत के उत्थान का मंत्र




सरकारी कर्मचारियों के वेतन आयोग की तर्ज पर किसान आय आयोग गठित करने की मांग जोर पकड़ रही है। तीन वर्ष पूर्व सबसे पहले मैंने किसानों के लिए सुनिश्चित मासिक आय के प्रावधान की मांग की थी। अब धीरे-धीरे देश हताश किसान समुदाय की आय सुरक्षा के बुनियादी मुद्दे पर ध्यान दे रहा है। अर्थव्यवस्था के आधार स्तंभ किसानों को सुनिश्चित आय प्रदान कर हम वास्तव में अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए जरूरी टानिक दे रहे हैं। कुछ समय पहले जींद में एक रैली में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने साफ-साफ कहा था कि अगर उनका दल सत्ता में आया तो वह किसानों को प्रत्यक्ष आर्थिक सहायता प्रदान करेंगे। तेलगूदेशम पार्टी के चंद्रबाबू नायडू भी किसानों समेत तमाम गरीबों के लिए काफी कुछ देने की घोषणा कर चुके हैं। इस बात का अहसास होते ही कि भारतीय राजनीतिक नेतृत्व किसानों को सीधे-सीधे आर्थिक सहायता की जरूरत के संबंध में सचेत हो रहा है, अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं में बेचैनी शुरू हो गई है। कुछ ने कहना शुरू कर दिया है कि किसानों को धन देने से वे आलसी हो जाएंगे।


इस प्रकार के विश्लेषण से मैं विचलित नहीं हूं। हममें से बहुत से लोगों को, जो किसानों को करीब से जानते हैं, यह पता है कि केवल किसान ही धन का सही इस्तेमाल करना जानते हैं। इसीलिए हम चाहते हैं कि वित्त मंत्री केवल उन्हीं के लिए अपनी तिजोरी खोलें। अन्य सभी इन संसाधनों को बर्बाद कर डालेंगे। वैश्विक कृषि की समझ के आधार पर कहा जा सकता है कि आधुनिक कृषि में खेती की दो तरह की अवधारणाएं हैं। पहली है, पाश्चात्य देशों में उच्च अनुदान प्राप्त खेती और दूसरी अवधारणा गुजारे की खेती में देखने को मिलती है, जो विकासशील देशों में प्रचलित है। गुजारे की खेती को बचाने का एकमात्र उपाय यही है कि विकसित और धनी देशों की तर्ज पर उन्हें भी प्रत्यक्ष आर्थिक सहयोग दिया जाए। अगर आप सोचते हैं कि मैं गलत हूं तो धनी और विकसित देशों में प्रत्यक्ष आर्थिक सहयोग बंद करके देख लें, इन देशों की खेती ताश के पत्तों की तरह भरभराकर ढह जाएगी। इसलिए समस्या कृषि की इन व्यवस्थाओं के प्रकार की है, जिन्हें अपनाने के लिए विश्व को बाध्य किया जा रहा है। पहली हरित क्रांति औद्योगिक कृषि व्यवस्था में फली-फूली, जिसने हमें उस संकट में फंसा दिया है, जिसका हम आज सामना कर रहे हैं। इसने भूमि की उर्वरता खत्म कर दी, कुपोषण को बढ़ाया, भूजल स्तर सोख लिया और मानव के स्वास्थ्य व पर्यावरण पर तो कहर बनकर टूटी पड़ी। इससे कोई सबक सीखने के बजाय हम दूसरी हरित क्रांति की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। यह हरित क्रांति वर्तमान संकट को बढ़ाएगी और जैसा कि विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व व्यापार संघ की मंशा है, किसानों को खेती से बेदखल कर देगी।


दूसरी हरित क्रांति जीएम फसलों के घोड़े पर सवार होकर आ रही है। यह कड़े आईपीआर कानूनों में बंधी हुई है। इसके तहत बीजों पर निजी कंपनियों का नियंत्रण हो जाएगा। साथ ही बाजार व्यवस्था में भारी बदलाव कर किसानों की जेब में बची-खुची रकम भी निकाल ली जाएगी। कृषि को फायदेमंद बताने के नाम पर इस व्यवस्था में अनुबंध खेती, खाद्य पदार्र्थो की रिटेल चेन, खाद्य वस्तुओं का विनिमय केंद्र और वायदा कारोबार आदि आते हैं। अगर ये व्यवस्थाएं कारगर होतीं और किसानों के लिए लाभदायक होतीं तो फिर अमेरिकी सरकार किसानों की मुट्ठी भर आबादी को किसी न किसी रूप में भारी-भरकम प्रत्यक्ष आर्थिक सहायता क्यों देती? तकलीफदेह बात यह है कि कृषि का यह विफल माडल ही भारत में आक्रामक तरीके से स्थापित किया जा रहा है। मुझे कभी-कभी हैरत होती है कि कृषि वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री और योजनाकार वास्तव में कर क्या रहे हैं? 40 साल से असरदार नौकरशाह और प्रौद्योगिकीविद किसानों को यही बताते आ रहे हैं कि वे जितना ज्यादा अन्न पैदा करेंगे, उनकी उतनी ही आमदनी बढ़ेगी। इस तरह चालीस सालों से वे किसानों को गुमराह करते आ रहे हैं। ऐसा उन्होंने क्यों किया, इसकी सीधी-सी वजह है। वास्तव में वे किसानों की मदद नहीं कर रहे थे, बल्कि किसानों की आड़ में खाद, कीटनाशक, बीज और कृषि संबंधी यांत्रिक उपकरण बनाने वाली कंपनियों के व्यापारिक हितों को बढ़ावा दे रहे थे। इसीलिए एनएसएसओ के इस आकलन पर हैरानी नहीं होती कि इन 40 साल के बाद एक किसान परिवार की मासिक आय मात्र 2115 रुपये है। किसान परिवार में पांच सदस्यों के साथ-साथ दो पशु भी शामिल हैं।


छठे वेतन आयोग में सरकारी सेवा में कार्यरत चपरासी को 15 हजार रुपये वेतन का वायदा किया गया है। एक राष्ट्र के रूप में क्या हम यह नहीं सोच सकते कि किसान की कम से कम इतनी आय तो हो जितना कि एक चपरासी वेतन पाता है? जब एक किसान परिवार की मासिक आय 2115 रुपये है तो नौकरशाहों और प्रौद्योगिकी के धुरंधरों को शर्म क्यों नहींआनी चाहिए? यदि वे शर्मिंदा नहीं होते तो हमें उन्हें अपनी गलती स्वीकारने को बाध्य करना चाहिए। उन कृषि अर्थशास्त्रियों के बारे में सोचिए जो शोध प्रबंधों, अध्ययनों और विश्लेषणों के माध्यम से हमें यह घुट्टी पिला रहे हैं कि आधुनिक कृषि लाभप्रद है। अब वे कहां हैं? क्या उनकी कोई जवाबदेही नहीं है। उनके गलत आकलनों की वजह से ही लाखों छोटे और सीमांत किसानों का जीवन उजड़ गया है। इन बीते वर्षों में किसानों को गुमराह किया गया। उन्हें इस बात का विश्वास दिलाया गया कि अगर वे और प्रयास करते हैं तो उन्हें और लाभ होगा। यही नहीं, ये अर्थशास्त्री, वैज्ञानिक और नौकरशाह अब मुक्त बाजार, कमोडिटी एक्सचेंज, वायदा कारोबार और खाद्य रिटेल चेन की दुहाई देने लगे हैं कि इससे कृषि आर्थिक रूप से समर्थ होगी। अमेरिका और यूरोप में यह प्रयोग सफल नहीं रहा है। भारत में भी यह सफल नहीं हो पाएगा।


यह ध्यान देने योग्य है कि किस तरह एक दोषपूर्ण नीति को भारत में इतनी तेजी के साथ बढ़ावा दिया जा रहा है। वायदा कारोबार, कमोडिटी एक्सचेंज का फायदा किसानों को नहीं, बल्कि संट्टेबाजों, परामर्शदायक संस्थाओं, रेटिंग एजेंसियों ओर व्यापरियों को होगा। विडंबना यह भी है कि किसान नेता किसानों के लिए एक निश्चित मासिक आय की मांग नहीं कर रहे हैं। वे केवल अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग कर रहे हैं। इनमें से कोई इस बात को नहीं समझ पा रहा है कि मुश्किल से 35 से 40 प्रतिशत किसान ही ऐसे हैं जो अंतत: सरकारी खरीद का लाभ उठा पाते हैं। शेष किसान समुदाय, जो वास्तव में बहुसंख्यक है, खाद्यान्न का उत्पादन करता है। अगर उनके पास थोड़ा-बहुत बेचने के लिए है तो भी उन्हें कम से कम भोजन की पूर्ति तो करनी ही है। अगर वे खुद के लिए अनाज नहीं उगाते तो देश को उतनी मात्र में खाद्यान्न आयात करना पड़ेगा। दूसरे शब्दों में वे आर्थिक समृद्धि पैदा कर रहे हैं। इसलिए उन्हें भी देश के लिए पैदा की जा रही आर्थिक समृद्धि के बदले में क्षतिपूर्ति मिलनी चाहिए।
[देविंदर शर्मा: लेखक खाद्य एंवं कृषि नीतियों के विश्लेषक हैं]

गो हत्या पर रोक जरूरी : आर्थिक और सांस्कृतिक दोनों पहलु


गोहत्या का प्रश्न केवल धार्मिक आस्थाओं से ही नहीं जुड़ा है, बल्कि देश के अर्थतंत्र, पर्यावरण व जलसंकट जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दे इससे सीधे प्रभावित होते हैं। आज बड़ी गंभीरता से यह बात कही जाती है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए होगा, इस दृष्टि से यदि कत्लखानों का विचार करें तो जलसंकट को बढ़ाने में इनकी भूमिका की अनदेखी नहीं की जा सकती।

एक कत्लखाने में प्रति पशु पांच सौ लीटर पानी लगता है। हिन्दुस्तान टाइम्स के प्रकाशित एक रपट के अनुसार कोलकाता के मोरी गांव कत्लखाने में 17 लाख 50 हजार लीटर पानी प्रतिदिन लगता है। इसके विपरीत एक व्यक्ति को प्रतिदिन औसतन 25 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि कोलकाता के इस कत्लखाने में करीब 70 हजार लोगों के उपयोग का पानी नष्ट कर दिया जाता है।

मुम्बई के देवनार कत्लखाने में 18 लाख 50 हजार लीटर पानी प्रतिदिन खर्च होता है। यहां लगभग 74 हजार लोगों के उपयोग का पानी नष्ट कर दिया जाता है। आंध्र प्रदेश के हैदराबाद स्थित कत्लखाने अल कबीर एक्सपोर्ट लिमिटेड में 6 हजार 600 पशु प्रतिदिन काटे जाते हैं। यहां 1 लाख 32 हजार लोगों के उपयोग का पानी प्रतिदिन नष्ट कर दिया जाता है।

गाय का दूध 30 - 40 रु. प्रति किलो की दर से मिलता है। और 600 ml. कोल्ड ड्रिंक 30 rs. की है तो  एक लीटर 50 rs. पड़ा ... जबकि देश में 15 रु. लीटर पानी बिक रहा है। जिस देश में गाय का दूध नहीं बेचा जाता था उस देश में पानी बेचा जा रहा है। ये कत्लखाने जितना पानी बर्बाद कर रहे हैं उससे पानी का संकट देश में कितना गंभीर होने वाला है यह समझा जा सकता है। इसलिए यह विचार करने की आवश्यकता है कि आज देश में पानी की ज्यादा आवश्यकता है या मांस की।


कोलकाता : मोरी गावं :      17 लाख 50 हज़ार लीटर पानी          70 हज़ार लोगों के लायक पानी              3500 जानवरों का क़त्ल

मुंबई: देवनार             :       18 लाख 50 हज़ार लीटर पानी          74 हज़ार लोगो के लायक पानी              3700 जानवरों का क़त्ल

हैदराबाद; अल           :        33 लाख लीटर पानी                         1 लाख 85 हज़ार लोगों के लायक पानी   660 जानवरों का क़त्ल

The Economist (Aug 27, 2008) states: Five big food and beverage companies -- Nestle, Unilever, Coca-Cola, Anheuser-Busch and Danone -- consume almost 575 billion litres of water a year, enough to satisy the daily water needs of every person on the planet.

IPL in 2013 April in MH   1 match takes 3 lakh litre water ..16 match ..   Total 48 lakh litre of water for 8 weeks
 

India produced 3.643 million metric tons  of which 1.963 million metric tons was consumed domestically and 1.680 million metric tons was exported. India ranks 5th in the world in beef production, 7th in domestic consumption and 1st is exporting.


http://www.business-standard.com/article/pti-stories/muslim-community-in-mathura-hold-anti-cow-slaughter-convention-113061000340_1.html



गाय माता के सभी भक्त जो उन्हें बचाना चाहते है हम से जुड़े !

Monday, 10 June 2013

मधुमेह (डायबिटीज) का इलाज़




आजकल मधुमेह की बीमारी आम बीमारी है। डाईबेटिस भारत मे 5 करोड़ 70 लाख लोगोंकों है और 3 करोड़ लोगों को हो जाएगी अगले कुछ सालों मे सरकार ये कह रही है | हर दो मिनट मे एक मौत हो रही है डाईबेटिस से और Complications तो बहुत हो रहे है... किसी की किडनी ख़राब हो रही है, किसीका लीवर ख़राब हो रहा है किसीको ब्रेन हेमारेज हो रहा है, किसीको पैरालाईसीस हो रहा है, किसीको ब्रेन स्ट्रोक आ रहा है, किसीको कार्डियक अरेस्ट हो रहा है, किसी को हार्ट अटैक आ रहा है Complications बहुत है खतरनाक है |

जब किसी व्यक्ति को मधुमेह की बीमारी होती है। इसका मतलब है वह व्यक्ति दिन भर में जितनी भी मीठी चीजें खाता है (चीनी, मिठाई, शक्कर, गुड़ आदि) वह ठीक प्रकार से नहीं पचती अर्थात उस व्यक्ति का अग्नाशय उचित मात्रा में उन चीजों से इन्सुलिन नहीं बना पाता इसलिये वह चीनी तत्व मूत्र के साथ सीधा निकलता है। इसे पेशाब में शुगर आना भी कहते हैं। जिन लोगों को अधिक चिंता, मोह, लालच, तनाव रहते हैं, उन लोगों को मधुमेह की बीमारी अधिक होती है। मधुमेह रोग में शुरू में तो भूख बहुत लगती है। लेकिन धीरे-धीरे भूख कम हो जाती है। शरीर सुखने लगता है, कब्ज की शिकायत रहने लगती है। अधिक पेशाब आना और पेशाब में चीनी आना शुरू हो जाती है और रेागी का वजन कम होता जाता है। शरीर में कहीं भी जख्म/घाव होने पर वह जल्दी नहीं भरता।

तो ऐसी स्थिति मे हम क्या करें ? राजीव भाई की एक छोटी सी सलाह है के आप इन्सुलिन पर जादा निर्भर न करे क्योंकि यह इन्सुलिन डाईबेटिस से भी जादा खतरनाक है, साइड इफेक्ट्स बहुत है |

इस बीमारी के घरेलू उपचार निम्न लिखित हैं।
आयुर्वेद की एक दावा है जो आप घर मे भी बना सकते है -
1. 100 ग्राम मेथी का दाना
2. 100 ग्राम तेजपत्ता
3. 150 ग्राम जामुन की बीज
4. 250 ग्राम बेल के पत्ते
इन सबको धुप मे सुखाके पत्थर मे पिस कर पाउडर बना कर आपस मे मिला ले, यही औषधि है |

औषधि लेने की पद्धति : सुबह नास्ता करने से एक घंटे पहले एक चम्मच गरम पानी के साथ लेले फिर शाम को खाना खाने से एक घंटे पहले लेले | तो सुबह शाम एक एक चम्मच पाउडर खाना खाने से पहले गरम पानी के साथ आपको लेना है | देड दो महीने अगर आप ये दावा ले लिया और साथ मे प्राणायाम कर लिया तो आपकी डाईबेटिस बिलकुल ठीक हो जाएगी |

ये औषधि बनाने मे 20 से 25 रूपया खर्च आएगा और ये औषधि तिन महिना तक चलेगी और उतने दिनों मे आपकी सुगर ठीक हो जाएगी |
सावधानी :

1. सुगर के रोगी ऐसी चीजे जादा खाए जिसमे फाइबर हो रेशे जादा हो, High Fiber Low Fat Diet घी तेल वाली डायेट कम हो और फाइबर वाली जादा हो रेशेदार चीजे जादा खाए| सब्जिया मे बहुत रेशे है वो खाए, डाल जो छिलके वाली हो वो खाए, मोटा अनाज जादा खाए, फल ऐसी खाए जिनमे रेशा बहुत है |

2. चीनी कभी ना खाए, डाईबेटिस की बीमारी को ठीक होने मे चीनी सबसे बड़ी रुकावट है | लेकिन आप गुड़ खा सकते है |

3. दूध और दूध से बनी कोई भी चीज नही खाना |

4. प्रेशर कुकर और अलुमिनम के बर्तन मे खाना न बनाए |

5. रात का खाना सूर्यास्त के पूर्व करना होगा |

जो डाईबेटिस आनुवंशिक होतें है वो कभी पूरी ठीक नही होता सिर्फ कण्ट्रोल होता है उनको ये दावा पूरी जिन्दगी खानी पड़ेगी पर जिनको आनुवंशिक नही है उनका पूरा ठीक होता है |

अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें:
http://www.youtube.com/watch?v=oiRf-LLSq0U

Thursday, 6 June 2013

भारतीय POP Culture एक बहुत बड़ा धोका है : राजीव मल्होत्रा




Secularism in India is the seclusion of Dharmic History of India from its very own People of India.. It is a process to subvert the truth to coming out in the public domain.


We are NOT free, unless our minds are still enslaved.
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Rajiv Malhotra

हिंदी में रूपांतरित :

भारत में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ भारत के अपने ही लोगों को भारत की धार्मिक इतिहास/मान्यताओं  से दूर करना हो गया है ...  यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो सत्य को दूर(नष्ट) करके उसे आम लोगों तक नहीं पहुचने दे रही !

The history of india has been erased, changed and altered by Abhrahmic elite, who re-created Indian education system,  laws, and media, to create a new society based on those distortions and called this Secularism...



How does digestion of Hinduism by Christianity works








Tuesday, 4 June 2013

डेरी किसान व् दुग्ध उद्योग खतरे में ...


हमारे बड़े भाई स्वरुप / हमारे गुरु देवेन्द्र शर्मा के ब्लॉग से हिंदी में रूपांतरित किया हुआ:




जरूर देखें और फेलायें : 

https://www.youtube.com/watch?v=JqD7oapb8ns&list=UUDzt-L-blq4TYjMPpIlJSew&index=29


भारत में दुग्ध उत्पादक बड़ी मुसीबत में है। बढ़ी हुयी लागत और कम होती कीमतों ने उन्हें पीछे धकेल दिया है .. परन्तु ग्राहक के मूल्य यथास्थित हैं, जो कम होने के कोई भी निर्देश नहीं दे रहे ।

जब एनसीपी  नेता प्रफुल पटेल ने एफ डी आई इन रिटेल की बहस के दौरान बोला की कैसे बारामती, महारास्त्र, में कृषि मंत्री शरद पवार ने भरोसा दिया की दुग्ध उत्पादकों को कम से कम Rs 20 लीटर का मूल्य मिलेगा, तो मुझे हंसी आयी । यह कोई उचित मूल्य नहीं है , बल्कि किसानों को दुःख देने वाला ही है। सभी कॉर्पोरेट और प्राइवेट प्लांट्स इसके आस पास ही मुल्य दे रहे हैं ।  

दूध के तैयार बड़े भंडार, लेकिन कमजोर निर्यात मांग, के कारण  दुग्ध उद्योग अपने नुक्सान कम करने की कोशिश कर रहा  है । इसलिए वह अपने नुक्सान को मूलतः सुरुवाती किसानों पर ढोने की कोशिश कर रहा है । और इस तरह की स्थिति भारत के लिए कोई अच्छी नहीं है । इसलिए यह जान्ने की कोशिश करें की कैसे अंतररास्ट्रीय समुदाय ने कदम उठाये ...

2009,  कैलिफ़ोर्निया में 1,800  में से लगभग 20 प्रतिशत दुग्ध फर्म्स, चारे व् यातायात की बढ़ी हुयी कीमत की वजह से बंद हो गयी । इसी तरह 2009 में जब अन्त्रास्त्रीय बाजार में दूध की कीमत गिरी, यूरोपियन समूह ने WTO की शर्ते खारिज करते हुए  से दूध में सब्सिडी शुरू करी  । इसमें 3600 करोड़ की सब्सिडी शामिल थी ताकि दूधिये अपने नुक्सान की भरपाई कर सके ।

अमेरिका और यूरोपियन समूह हमेश अपने डायरी किसानों को बचने की कोशिश ही की है । मुझे ये बात समझ में नहीं आती की क्यों हमारे यहाँ गृह दूधियों को बर्बाद होने दिया जा रहा है जबकि कीमत गिरने में उनका कोई  नहीं । जब प्राइवेट और सहकारिता उद्योग ने दूध की कीमत को
Rs 20.50 तक गिर दिया , तो फिर जानवरों को पलना खर्चीला ही होगा । पंजाब गुजरात महारास्त्र, और राजस्थान में बहुत ही किसानों ने दूध उत्पादन छोर दिया ।

अब देखते है कैसे यूरोप कैसे सामना किया इस मुश्किल से । यूरोपियन समूह में करीब 10 लाख डेरी किसान हैं । पूरा मिला के ये भारत या अमेरिका से ज्यादा दूध उत्पादन करते हैं । WTO के हिसाब से , एरोपेअन समूह ने अपनी डेरी सब्सिडी को ख़तम करना होगा ।  परन्तु कौन परवाह करता है जब ये घरेलु मामला बन जाता है । यूरोपियन समूह ने दुबारा सब्सिडी देना सुरु किया ताकि उनके दूध उत्पादन को सहारा मिल सके और साथ ही एक्सपोर्ट को भी । यह करने से यूरोपियन समूह पुरे विश्व  बाजार के लगभग 32 प्रतिशत मात्रा पर कब्ज़ा कर सका  ।

डेरी फार्मर ऑफ़ कनाडा (DFA ), के अनुसार EU के डेरी किसान लगभग Rs 3.96 करोड़ सब्सिडी प्राप्त होता है ।

इस तरह की भारी सब्सिडी वहां के किसानों को बाजार के उतार चढाव से बचाती है, और साथ ही उन्हें सब्सीडाइजड दूध को विकाशशील देशो में डंप करवाती है ।

एक्सपोर्ट बाजार को देखते हुए, EU ने EU-
India Free Trade Agreement (FTA) में मांग की है दूध पे टैक्स 90 प्रतिशत तक घतियी जाए ।  EU भारत को एक दूध व् दूध के प्रोडक्ट के बड़े बाजार के रूप में देखता है और चाहता है की भारत अपने घरेलु दरवाजे यूरोपियन समूह के लिए  खोले ।

कम होते फार्म्स 


अमेरिका में
1992 से डेरी फार्म्स लगभग 61 प्रतिशत  कम हो गए । और अब सिर्फ 51,480  ही डेरी फार्म्स बचे है । ये फर्म्स Rs 27,500 करोड़ रुपये प्राप्त कर चुके है 2009 से, मतलब उनके दूध की कीमत का तीसरा हिस्सा सब्सिडीइजेड है । ये सब्सिडी बिभिन्न  रूपों से  आती है: milk income loss contract payment; market loss assistance; milk income loss transitional payment; dairy economic loss assistance programme; milk marketing fees; dairy disaster assistance; and dairy indemnity.

EU अपने डायरी एक्सपोर्ट के लगभग 50 प्रतिशत को सब्सिडी देती है।
सामान्यतः कहा जाता है की अमेरिका और एरोपे के किसान सिर्फ प्राइवेट सप्लाई चैन पर ही निर्भर है .. ऐसा सच नहीं है .. मार्च
2009, के बाद EU ने एक्स्ट्रा (सरप्लस) मक्खन, दूध ख़रीदन सुरु किया। अमेरिका में भी येही किया गया । और इसके अलावा, 2002 से वहाँ दूधियों को  सीधे कैश सब्सिडी देना भी सुरु किया जब भी कीमते गिरी । 

ऐसा नहीं है की राज्य सरकारों के पास पर्याप्त साधन नहीं है .. जैसे पंजाब ने
Rs 1250 करोड़ रुपए का इंटरेस्ट फ्री लोन दिया और जिसमे 15 साल का टैक्स होलिद्य दिया स्टील किंग लक्ष्मी मित्तल को बठिंडा में रेफिनारी लगाने के लिए । मुझे ये समझ में नहीं आता की सर्कार छोटे किसानो  को क्यों नहीं बचाना चाहती जो की डूब रहे हैं ।


इसलिए सरकार को चाहिए की  वे सहकारिता को सुस्बिद्य दे और जिससे मुल्य 25 rs तक कम से कम हो . दूसरा बैंक का इंटरेस्ट भी कम करना चाहिए जो की अभी
12.5 से 7 तक होना चाहिए ।

सर्कार को चाहिए की दुग्ध उत्पादकों को बचाए 
इससे पहले की वे इसको छोड़े जिससे भारत गहरी कमी में पड  जाएर और भारत को इसका बड़ा आयातक होना पड़ जाए |


सूत्र :
Milk crisis loomingDeccan Herald, Jan 5, 2013.
http://www.deccanherald.com/content/303002/milk-crisis-looming.html